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Tuesday, May 20, 2014

आओ अनुज हम तुम्हे करें कवि बना मंचासीन,
कोई कवि ठहरे नहीं जब तुम हो जाओ आसीन !
हो जाओ आसीन बहाओ कविता की अविरल धारा ,
ज्यों बही शीश चंद्रशेखर अविरल जटाशंकरी धारा !! 
नामचीन  हो नाम नरेंद्र हो बोलो अब क्या है कमी ,
ढेरों कविताएं लिख दी अब बन गयी है  निर्झरिणी !! ''तनु ''

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