आओ अनुज हम तुम्हे करें कवि बना मंचासीन,
कोई कवि ठहरे नहीं जब तुम हो जाओ आसीन !
हो जाओ आसीन बहाओ कविता की अविरल धारा ,
ज्यों बही शीश चंद्रशेखर अविरल जटाशंकरी धारा !!
नामचीन हो नाम नरेंद्र हो बोलो अब क्या है कमी ,
ढेरों कविताएं लिख दी अब बन गयी है निर्झरिणी !! ''तनु ''
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