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Monday, May 12, 2014

 सुप्रभातम 


चिलचिलाती धूप ढूंढे, …   एक टुकड़ा अभ्र का ,
थक गया है सूरज टूटता है अब प्याला सब्र का !!!
कुछ नियम औ कायदे हों बचाने को कायनात के , 
आभार से सँवारो प्रकृति को सम्मान दो कद्र का !!!तनुजा ''तनु '' 


सोलह दिन सोलह सावन रजनी सेज सज़ाए !
चन्दा देखो जा जा कर उदधि का जी बहलाये !!
रजनी रूठी चन्दा से बोली जा अब न मिलूँगी !
ठग बन बैठा चन्दा छुपता  झूठ कहां छुपाए !!  तनुजा ''तनु ''


सोलह रातें सोलह सावन सी ,
दिन दिन दूनी मन भावन सी !
कठिन काली रात अमावस्या की ,
निशिचर की यम की रावन सी !! तनुजा ''तनु ''


सोलह रातें सोलह सावन यामिनी रंग भरती रही ,
रजनी कर श्रृंगार नदिया के जल से संवरती रही ! 
पूनम का बड़ा चाँद निकल आया मेरु के पीछे से  ,
तारो की चूनर पहन चाँद टीका रात चमकती रही !! तनुजा ''तनु ''



उस पहाड़ी के उस पार डूब जाता है सूरज !
उस नदी के किनारे से आ जाता है सूरज !! 
रोज़ आता रोज़ जाता है न जाने कहां से !!!
रात  सुलाता है, दिन खिलाता है सूरज !!!! तनुजा ''तनु ''



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