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Saturday, August 19, 2017





दरख्त हरे गिरा गयी,   कैसी निर्दय बाढ़ !
नैन का जल जला गयी, डूब गयी है भाड़!!

गीत गा रही बाँसुरी,    ताल पखावज देत,
नृत्य करे मन बावरा, पग पग आहट लेत !

लगाती आग भूख की, बीत गयी जो रात !
उगाता दिन मौत का,  सूरज करता घात !!

सपने दरिया के दूर हैं,  देखी नहीं बहार !
मरीचिका सी जिंदगी, भोजन भी दुश्वार !!

थकन पाँव से बाँध के, नींद गयी है डूब !
दीवाने सपने हुए ,     छुपे नयन महबूब !!

टुकड़ा ढूँढू मेघ का,    जिस पर मेरा नाम !
खुद तरसा है तरस के,  नाहक है बदनाम !!

काम करता कुदाल का ,मजदूरों का स्वेद !
बिस्तर तोड़ें आप तो,     नाहक करते खेद!!

इक किसान लिखवा रहा, फाकों की तफ़्सील ! 
बुरा वक्त नाकामियाँ,        कौन करे तब्दील ??

पराये पोंछे अँखियाँ  प्यार जताते गैर !
अपनों में हम गैर से ,कैसे मनती खैर !!,,...''तनु''




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