दरख्त हरे गिरा गयी, कैसी निर्दय बाढ़ !
नैन का जल जला गयी, डूब गयी है भाड़!!
गीत गा रही बाँसुरी, ताल पखावज देत,
नृत्य करे मन बावरा, पग पग आहट लेत !
लगाती आग भूख की, बीत गयी जो रात !
उगाता दिन मौत का, सूरज करता घात !!
सपने दरिया के दूर हैं, देखी नहीं बहार !
मरीचिका सी जिंदगी, भोजन भी दुश्वार !!
दीवाने सपने हुए , छुपे नयन महबूब !!
टुकड़ा ढूँढू मेघ का, जिस पर मेरा नाम !
खुद तरसा है तरस के, नाहक है बदनाम !!
काम करता कुदाल का ,मजदूरों का स्वेद !
बिस्तर तोड़ें आप तो, नाहक करते खेद!!
इक किसान लिखवा रहा, फाकों की तफ़्सील !
बुरा वक्त नाकामियाँ, कौन करे तब्दील ??
पराये पोंछे अँखियाँ प्यार जताते गैर !
अपनों में हम गैर से ,कैसे मनती खैर !!,,...''तनु''
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