सवेरा
निशा का फिर सवेरा हो गया है
अन्धेरा फिर अकेला हो गया है
आओ मिल नीड का निर्माण हो
प्रेम पथ पर नेह का आह्वान हो
आ रही उन आँधियों को फेर दो
प्राची में देखो उजेरा हो गया है
निशा का फिर सवेरा हो गया है
अन्धेरा फिर अकेला हो गया है
कौन डर जाएगा यूँ दुर्देव से
कुनीतियाँ कुचली गयी सदैव से
गा रहे उन पंछियो को टेर दो
आशाओं के हित बसेरा हो गया है
निशा का फिर सवेरा हो गया है
अन्धेरा फिर अकेला हो गया है
कौन कमल विहँसने से रुकेगा
चाँद भी कुमुदिनी पर झुकेगा
चलो बादलों, चाप इंद्र उकेर दो
क्षितिज भी अब घनेरा हो गया है
निशा का फिर सवेरा हो गया है
अन्धेरा फिर अकेला हो गया है
प्रतीक्षा का समापन नजदीक है
क्यों निर्झर ले नयन भयभीत हैं
श्वास ओ सिहरे पवन ना अबेर दो
मधुरिमा घुली !!! लो जगेरा हो गया है
निशा का फिर सवेरा हो गया है
अन्धेरा फिर अकेला हो गया है
संभावनाओं के पथ धुंधले न होंगे
मनुज व्यर्थ वाणी से गंदले न होंगे
आओ किरणों तुम नई सवेर दो
भानु भोर का चितेरा हो गया है
निशा का फिर सवेरा हो गया है
अन्धेरा फिर अकेला हो गया है , ,,, ''तनु ''
No comments:
Post a Comment