Labels

Tuesday, August 22, 2017

सवेरा



 सवेरा 

निशा का फिर सवेरा हो गया है 
अन्धेरा फिर अकेला हो गया है 

आओ मिल नीड का निर्माण हो 
प्रेम पथ पर नेह का आह्वान हो 
आ रही उन आँधियों को फेर दो 
प्राची में देखो उजेरा हो गया है 

निशा का फिर सवेरा हो गया है 
अन्धेरा फिर अकेला हो गया है 

कौन डर जाएगा यूँ  दुर्देव से 

कुनीतियाँ कुचली गयी सदैव से 
गा रहे उन पंछियो को टेर दो
आशाओं के हित बसेरा हो गया है 

निशा का फिर सवेरा हो गया है 

 अन्धेरा फिर अकेला हो गया है 

कौन कमल विहँसने से रुकेगा 

चाँद भी कुमुदिनी पर झुकेगा 
चलो बादलों, चाप इंद्र उकेर दो 
क्षितिज भी अब घनेरा हो गया है

 निशा का फिर सवेरा हो गया है 
अन्धेरा फिर अकेला हो गया है 

प्रतीक्षा का समापन नजदीक है 
क्यों निर्झर ले नयन भयभीत हैं  
श्वास ओ  सिहरे पवन ना अबेर दो 
मधुरिमा घुली !!! लो जगेरा हो गया है 

 निशा का फिर सवेरा हो गया है 
अन्धेरा फिर अकेला हो गया है 

संभावनाओं के पथ धुंधले न होंगे 
मनुज व्यर्थ वाणी से गंदले न होंगे 
आओ किरणों तुम नई सवेर दो 
भानु भोर का चितेरा हो गया है

निशा का फिर सवेरा हो गया है 
अन्धेरा फिर अकेला हो गया है , ,,, ''तनु ''






No comments:

Post a Comment