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Monday, August 21, 2017

अंधी बाढ़ !






आजकल आती ही ऐसी ;
होती कभी न मंदी बाढ़ !

कई बरस में देखी होगी ;
सबने ऐसी अंधी बाढ़ ! 

हरियाली पर ये क्या बोले ;
कीचड़ के संग बंधी बाढ़ !

कर न पाया प्रतिकार कोई ;
कैसी ये प्रतिद्वंद्वी बाढ़ !

कीमत जिंदगी ने खोयी ;
क्रूर नाचती नंगी बाढ़ !

कितनी घातक कितनी मैली ;
कहाँ होती सुगंधी बाढ़ !

जाने कर्म की सजा दे रही ;
 बनी है अब तो चंडी बाढ़ !

कितना हर्जाना मांग रही ;
लेती ही जा रही खंडी बाढ़ !

कितने दरख्त कितने छौने ;
खा गयी कितने पंछी बाढ़ !

अभिशप्त हुआ है जन जन ;
तोड़ गयी सब संधि बाढ़ !

विनती नहीं किसी की सुनती ;
 निर्मम निर्दय हंत्री बाढ़ !,,, ''तनु''

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