आजकल आती ही ऐसी ;
होती कभी न मंदी बाढ़ !
कई बरस में देखी होगी ;
सबने ऐसी अंधी बाढ़ !
हरियाली पर ये क्या बोले ;
कीचड़ के संग बंधी बाढ़ !
कर न पाया प्रतिकार कोई ;
कैसी ये प्रतिद्वंद्वी बाढ़ !
कीमत जिंदगी ने खोयी ;
क्रूर नाचती नंगी बाढ़ !
कितनी घातक कितनी मैली ;
कहाँ होती सुगंधी बाढ़ !
जाने कर्म की सजा दे रही ;
बनी है अब तो चंडी बाढ़ !
कितना हर्जाना मांग रही ;
लेती ही जा रही खंडी बाढ़ !
कितने दरख्त कितने छौने ;
खा गयी कितने पंछी बाढ़ !
अभिशप्त हुआ है जन जन ;
तोड़ गयी सब संधि बाढ़ !
विनती नहीं किसी की सुनती ;
निर्मम निर्दय हंत्री बाढ़ !,,, ''तनु''
No comments:
Post a Comment