औरत तुम तो एक पहेली सी हो ;
कभी अंजान कभी सहेली सी हो !
घनी रजनी में तुम किरण भोर की ;
जलते रेगिस्तान बेला चमेली सी हो !
पापा थके जब दौड़ पानी भर लाओ ;
सिर सहलाती नन्ही हथेली सी हो !
जीवन की धुंध सुनहरा ख्वाब हो तुम ;
सहेजती हर चीज को हवेली सी हो !
बहन है प्यार घर का कोना महकाती ;
लड़ती झगड़ती कभी अलबेली सी हो !
कभी प्रौढ़ बनकर, कभी शृंगार में ग़ुम ;
कभी दुल्हन बन तुम नवेली सी हो !
मिठास से मीठी तुम नीम से कड़वी ;
खटाई में इमली कभी गुडभेली सी हो !
लिए वैराग्य का कोना पड़ी ठिठुरती ;
धवल धारण किये तुम अकेली सी हो !,... ''तनु ''
No comments:
Post a Comment