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Tuesday, August 22, 2017

औरत





औरत तुम तो एक पहेली सी हो ;
कभी अंजान कभी सहेली सी हो !

घनी रजनी में तुम किरण भोर की ;
जलते रेगिस्तान बेला चमेली सी हो !  

पापा थके जब दौड़ पानी भर लाओ ;
 सिर सहलाती नन्ही हथेली सी हो !

जीवन की धुंध सुनहरा ख्वाब हो तुम ;

सहेजती हर चीज को हवेली सी हो !

बहन है प्यार घर का कोना महकाती ; 
लड़ती झगड़ती कभी अलबेली सी हो !

कभी प्रौढ़ बनकर, कभी शृंगार में ग़ुम ;
कभी दुल्हन बन तुम नवेली सी हो !

मिठास से मीठी तुम नीम से कड़वी ;

खटाई में इमली  कभी गुडभेली सी हो !
  
लिए वैराग्य का कोना पड़ी ठिठुरती ;
धवल धारण किये तुम अकेली सी हो !,... ''तनु ''


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