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Tuesday, August 15, 2017




चलनी में अब रह गयी,  कैसी मानव जात ! 
नीचे छानन जा गिरा ,     खाये घूँसे लात !!

प्रीत निभावे छूरियाँ ,      बात करें बंदूक !
दुनिया बदली देखते,  जी में  उठती हूक !!

सारा खेल है कुर्सी ,     बड़ा बुरा ये रोग !

फिर कभी नहीं पायगा  इस जन्म ले भोग 

आप आप में उलझिये,रहे सेंक हम रोट !
यही सियासी पैंतरे ,    खूब बनाते नोट !!

छुपी सभी नाक़ामियाँ ,   परदे पीछे साँच !
चूल्हे ऊपर खिचड़ी, पकती है बिन आँच !! 

शीश ढकते पैर खुले,  आफत में है जान ! 
गरीब के दुःख थेगले,     हैं पैबंद निशान !!

कौन  देखता चेहरा ,  छुपा पीछे नकाब !
लगाते सारे एक से,  बडा सुर काँव काँव !! 

सत्य छुपता नहीं कभी,  उसमें नाही खोट !
राख  रही चिनगारियाँ,  सूरज बादल ओट !!

बंधन बाँधू प्यार के ,          ले भावों के बंध !
जनम जनम शुभकामना, रिश्तों की सुगंध !!

राखी सिर्फ सूत नहीं, 
नहीं नाम परिहास !
निर्मल मन मुक्ता धरे, सागर सा अहसास !!... 'तनु' 



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