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Friday, August 4, 2017

बूँदे !






हरियाली 
छा जाती कैसे 
जाने 
मेरु के 
पाषाण हृदय को 
सिंचित करती 
नीर की 
बूँदे !


मन क्यों 
भा जाती
 गीले केशों से 
टपकती 
पिय को 
अभिमन्त्रित
 करती 
नीर की
 बूँदे ! 
  
                             
दीप चाह के
 तिल तिल जलते 
मन भोला है 
झूठे सपने 
कब तक
 छलती 
पीर की 
बूँदे !


अकेले 
पथ में
 चुभते कंकड़
  दूर है मंज़िल
 राह न पाऊँ 
मिलेंगी  झरती 
क्षीर की 
बूँदे !

है 
दुखियारी 
नहीं मिला 
पिय 
बिरहिन कोयल
 कुहुक पुकारे 
कब से मरती 
 हीर की 
बूँदे !

छाया धूप  में 
भाव पले 
बारिश ने भी 
 ग़ज़ल कही 
कबसे 
नदियों की 
मसि सी 
 मीर की
 बूँदे !.... ''तनु ''

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