हरियाली
छा जाती कैसे
जाने
मेरु के
पाषाण हृदय को
सिंचित करती
नीर की
बूँदे !
मन क्यों
भा जाती
गीले केशों से
टपकती
पिय को
अभिमन्त्रित
करती
नीर की
बूँदे !
दीप चाह के
तिल तिल जलते
मन भोला है
झूठे सपने
कब तक
छलती
पीर की
बूँदे !
अकेले
पथ में
चुभते कंकड़
दूर है मंज़िल
राह न पाऊँ
मिलेंगी झरती
क्षीर की
बूँदे !
है
दुखियारी
नहीं मिला
पिय
बिरहिन कोयल
कुहुक पुकारे
कब से मरती
हीर की
बूँदे !
छाया धूप में
भाव पले
बारिश ने भी
ग़ज़ल कही
कबसे
नदियों की
मसि सी
मीर की
बूँदे !.... ''तनु ''
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