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Monday, August 21, 2017

बाढ़

बाढ़ 

धरती विप्लव गान गा रही 
प्राणों के लाले पड़ गए 
अंबर चीखे त्राहि त्राहि
आया तम उजाले घर गए 

लहरों की लीला देखो
जीवन को ले लील गयी 
क्षितिज अब तो डूबा डूबा 
कहाँ खो अबाबील गयी 
पेड़ फसलें बह गयी,   खेत खलिहान उजड़  गए
धरती विप्लव गान गा रही, प्राणों के लाले पड़ गए 

दूध मलीदा खाने वाले 
स्वच्छ जल को तरस गये 
रोटी कहां नसीबा में थी 
दुःख के बादल बरस गए 
जीवन देने वाला जल,  जीवन उजाड़ उजड्ड गए 
धरती विप्लव गान गा रही, प्राणों के लाले पड़ गए 


घर डूबा छत पर पहुंचे 
छत से ही देखें आकाश 
शायद कोई आ जाये तो 
पहुंचे कोई कहीं से आस 
देखो कोई बहा मवेशी, बही सड़क संग रगड़ गए
धरती विप्लव गान गा रही, प्राणों के लाले पड़ गए 

पथरा कर  पत्थर हो गये 
जल में जलहीन नयन है 
कौन डूबा गिनती नहीं है 
कुअंक लुटा रहा गगन है 
कितनी माँएं पूत बिन सोई, कितने लाल सुघड़ गये 
धरती विप्लव गान गा रही, प्राणों के लाले पड़ गए 

सुख पल के  सिंदूर बह गये 
पता नहीं वे  सुदूर बह गये  
दफ़नाने को जमीन नहीं है 
अब न आऊँगा नयन कह गये 
डूब डूब मैं डूब रहा हूँ ,जीव मौत से झगड़ गये 
धरती विप्लव गान गा रही, प्राणों के लाले पड़ गए !!... ''तनु ''














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