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Wednesday, August 16, 2017






चोर हैं तेरे 
थैली के चट्टे बट्टे 
भिन्न चेहरे


काल का गाल 
अश्रु से नम आँखें 
बीती है बात 

खूब गढ़िये 
पल पल नवीन 
माटी का तन 

मित्र न होता 
दर्पण तन बिन 
दीप  नयन 

मिटे न भाल 
कुअंक विधान के 
अश्रु नयन 

कल काल का 
दुःख भी परस्पर 
होते संग में 

पीड़ा के पार 
सुख की अनुभूति 
जन्म नया 

पली कामना 
नए सृजन कर 
पंख लगाये 






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