चोर हैं तेरे
थैली के चट्टे बट्टे
भिन्न चेहरे
काल का गाल
अश्रु से नम आँखें
बीती है बात
खूब गढ़िये
पल पल नवीन
माटी का तन
मित्र न होता
दर्पण तन बिन
दीप नयन
मिटे न भाल
कुअंक विधान के
अश्रु नयन
कल काल का
दुःख भी परस्पर
होते संग में
पीड़ा के पार
सुख की अनुभूति
जन्म नया
पली कामना
नए सृजन कर
पंख लगाये
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